एक तरफ जहाँ सेनाध्यक्ष जेन.वीके.सिंह का "उम्र विवाद" हमारे देश के लिए लज्जा का विषय बना हुआ है वही दूसरी तरफ लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह के वीरता की गाथा पूरे भारत देश को गर्वित कर रहा है | २६ जनवरी २०१२ को ठीक परेड से पहले भारतीय राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने पूरे भातर के ओर से लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार "अशोक चक्र" से सम्मानित किया | यह बहुत पुरानी बात नहीं है जब २० अगस्त २०११ को १५ मराठा लाइट इन्फैंट्री का ये बांका जवान, नियंत्रण रेखा पर आतंकवादियों के साथ एक मुटभेड़ में अपने साथी को बचाते बचाते शहीद हो गया|
जब नवदीप की शहादत की खबर उनके घर गुरदासपुर पहुची थी तो पूरा मोहल्ला और उनके परिवारजन शोकातुर हो उठे पर नवदीप के पिता सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर जोगिन्दर सिंह ने धीरज नहीं खोया उनके ये शब्द "उसने आतंकवादियों के साथ लड़ाई तो जीत ली पर इसके लिए उसे अपनी प्राणों का बलिदान देना पड़ा | मुझे अपने बेटे की शहादत पर बहुत गर्व है और मैं अपने छोटे बेटे संदीप को भारतीय सेना में भेजने से नहीं झिझकूंगा " , भारत और सेना की प्रति निष्ठां का प्रमाण है|
२६ वर्षीय नवदीप ने ही इस जंगी काररवाई की योजना बनाई थी और जम्मू और कश्मीर के गुरेज सेक्टर के बग्टर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पर १२ आतंकवादियों को मार गिराया | वो खुद तो शहीद हो गए पर भारतीय सेना की गरिमा पे आंच नहीं आने दी|
आर्मी स्कूल, टिबरी, और इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, गुरदासपुर का पूर्व छात्र, नवदीप एक उज्ज्वल और जोशीला व्यक्ति था | हालांकि उसने सेना प्रबंधन संस्थान, कोलकाता से एमबीए पूरा किया, पर वह हमेशा परिवार की परंपराओं के अनुसार सेना में शामिल होना चाहता था | इनके दादा अजित सिंह ने १९६५ के भारत - पाक युद्ध में भाग लिया था और इनके पिता, एक सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर है|
१९ अगस्त २०११ की उस रात को, लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह और उनके कमांडो प्लाटून को खुफिया विभाग के सूचनाओ के आधार पर कन्ज़ल्वान उप-सेक्टर में उच्च प्रशिक्षित आतंकवादियों के एक बड़े समूह से निपटने के लिए तैनात किया गया था | ये आतंकवादी आधुनिक और घातक हथियारों से सुसज्जित थे | सेना की टुकड़ी का आगे से नेतृत्व करते हुए नवदीप ने उच्चकोटि के सामरिक कौशल और छेत्र प्रबन्धन का परिचय दिया | नवदीप ने बहुत पहले से ही दुश्मन की चाल भांप ली थी और अपने साथियों समेत घात लगाकर उनकी प्रतीक्षा करने लगे | नवदीप ने अपने बिछाये हुए चक्रव्यूह में दुश्मनों को आने दिया और उचित समय देखकर हमला बोल दिया और अकेले ही ३ आतंकवादियों का सफाया कर दिया | जवाबी कारवाई में बुरी तरह घायल होने के बावजूद उसने जंग जारी रखी| सर्वोच्च सैन्य आदर्शों का प्रदर्शन करते हुए और अपने घावों को अनदेखा करते हुए उन्होंने चौथे आतंकवादी को मार गिराया और अपने मित्र के प्राण बचाए | उनके इस साहसिक प्रदर्शन के बल पर सेना ने खूंखार १२ आतंकवादियों का सफाया कर डाला पर इस घटनाचक्र में उनके शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया और वे वीरगति को प्राप्त हो गए |
एक एम.बी.ए होने के बावजूद नवदीप ने सेना को अपना कर्मछेत्र चुना दूसरा कोई युवा होता तो शायद वो कॉरपोरेट जगत की ऊंची तन्क्वाह वाली कोई दूसरी नौकरी कारता | पर यह बात सत्य है कि देशभक्ति, स्वाभिमान और वीरता खून में होती है और इसके पीछे पारिवारिक आदर्शो कि बहुत बड़ी भूमिका होती है | राष्ट्र और सशस्त्र बल सर्वदा तुम्हारी वीरता कि गाथा दोहराता रहेगा | गड्तंत्र दिवस कि इस अवसर पे मेरा लेख मेरे और मेरे दोस्तों कि तरफ से नवदीप को भावभीनी श्रधांजलि है|
आपकी टिप्पड़ियो की प्रतीक्षा रहेगी --सुदीप चक्रवर्ती