गुरुवार, 26 जनवरी 2012

अशोक चक्र से सम्मानित एक और बांका जवान (Lt Navdeep Singh awarded Ashok Chakra)





एक तरफ जहाँ सेनाध्यक्ष जेन.वीके.सिंह का "उम्र विवाद" हमारे देश के लिए लज्जा का विषय बना हुआ है वही दूसरी तरफ लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह के वीरता की गाथा पूरे भारत देश को गर्वित कर रहा है | २६ जनवरी २०१२ को ठीक परेड से पहले भारतीय राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल ने पूरे भातर के ओर से लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह को मरणोपरांत देश के सर्वोच्च वीरता पुरस्कार "अशोक चक्र" से सम्मानित किया | यह बहुत पुरानी बात नहीं है जब २० अगस्त २०११ को १५ मराठा लाइट इन्फैंट्री का ये बांका जवान, नियंत्रण रेखा पर आतंकवादियों के साथ एक मुटभेड़ में अपने साथी को बचाते बचाते शहीद हो गया|

जब नवदीप की शहादत की खबर उनके घर गुरदासपुर पहुची थी तो पूरा मोहल्ला और उनके परिवारजन शोकातुर हो उठे पर नवदीप के पिता सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर जोगिन्दर सिंह ने धीरज नहीं खोया उनके ये शब्द "उसने आतंकवादियों के साथ लड़ाई तो जीत ली पर इसके लिए उसे अपनी प्राणों का बलिदान देना पड़ा | मुझे अपने बेटे की शहादत पर बहुत गर्व है और मैं अपने छोटे बेटे संदीप को भारतीय सेना में भेजने से नहीं झिझकूंगा " , भारत और सेना की प्रति निष्ठां का प्रमाण है|

२६ वर्षीय नवदीप ने ही इस जंगी काररवाई की योजना बनाई थी और जम्मू और कश्मीर के गुरेज सेक्टर के बग्टर क्षेत्र में नियंत्रण रेखा पर १२ आतंकवादियों को मार गिराया | वो खुद तो शहीद हो गए पर भारतीय सेना की गरिमा पे आंच नहीं आने दी|

आर्मी स्कूल, टिबरी, और इंस्टीट्यूट ऑफ होटल मैनेजमेंट, गुरदासपुर का पूर्व छात्र, नवदीप एक उज्ज्वल और जोशीला व्यक्ति था | हालांकि उसने सेना प्रबंधन संस्थान, कोलकाता से एमबीए पूरा किया, पर वह हमेशा परिवार की परंपराओं के अनुसार सेना में शामिल होना चाहता था | इनके दादा अजित सिंह ने १९६५ के भारत - पाक युद्ध में भाग लिया था और इनके पिता, एक सेवानिवृत्त सूबेदार मेजर है|

१९ अगस्त २०११ की उस रात को, लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह और उनके कमांडो प्लाटून को खुफिया विभाग के सूचनाओ के आधार पर कन्ज़ल्वान उप-सेक्टर में उच्च प्रशिक्षित आतंकवादियों के एक बड़े समूह से निपटने के लिए तैनात किया गया था | ये आतंकवादी आधुनिक और घातक हथियारों से सुसज्जित थे | सेना की टुकड़ी का आगे से नेतृत्व करते हुए नवदीप ने उच्चकोटि के सामरिक कौशल और छेत्र प्रबन्धन का परिचय दिया | नवदीप ने बहुत पहले से ही दुश्मन की चाल भांप ली थी और अपने साथियों समेत घात लगाकर उनकी प्रतीक्षा करने लगे | नवदीप ने अपने बिछाये हुए चक्रव्यूह में दुश्मनों को आने दिया और उचित समय देखकर हमला बोल दिया और अकेले ही ३ आतंकवादियों का सफाया कर दिया | जवाबी कारवाई में बुरी तरह घायल होने के बावजूद उसने जंग जारी रखी| सर्वोच्च सैन्य आदर्शों का प्रदर्शन करते हुए और अपने घावों को अनदेखा करते हुए उन्होंने चौथे आतंकवादी को मार गिराया और अपने मित्र के प्राण बचाए | उनके इस साहसिक प्रदर्शन के बल पर सेना ने खूंखार १२ आतंकवादियों का सफाया कर डाला पर इस घटनाचक्र में उनके शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया और वे वीरगति को प्राप्त हो गए |

एक एम.बी.ए होने के बावजूद नवदीप ने सेना को अपना कर्मछेत्र चुना दूसरा कोई युवा होता तो शायद वो कॉरपोरेट जगत की ऊंची तन्क्वाह वाली कोई दूसरी नौकरी कारता | पर यह बात सत्य है कि देशभक्ति, स्वाभिमान और वीरता खून में होती है और इसके पीछे पारिवारिक आदर्शो कि बहुत बड़ी भूमिका होती है | राष्ट्र और सशस्त्र बल सर्वदा तुम्हारी वीरता कि गाथा दोहराता रहेगा | गड्तंत्र दिवस कि इस अवसर पे मेरा लेख मेरे और मेरे दोस्तों कि तरफ से नवदीप को भावभीनी श्रधांजलि है|


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रविवार, 22 जनवरी 2012

मंदिरों के पीछे छुपा हुआ विज्ञान (Science Behind Indian Temples)



यह हमें हर समय ध्यान में रखना चाहिए कि हमारे पूर्वजो ने मंदिरों का निर्माण केवल प्रार्थना और पूजा करने कि लिए ही नहीं किया था वरन उसके पीछे अन्य कई कारण थे , परन्तु समय के साथ साथ आज कल मंदिर पूजा घर बन गए है | मूर्तिस्थापना, परिक्रमा, गर्भगृह आदि संरचनाओ में यदि उचित सामंजस्य हो तो वह एक अलग प्रकार कि उर्जा छेत्र का निर्माण करते है | मंदिरों में मूर्ति स्थापना या प्राण प्रतिष्ठा के समय पांच विषयो पर विशेष प्रकार ध्यान दिया जाता है  

(१) मूर्ति का आकार 
(२) मूर्ति का रूप 
(३) मूर्ति की दिशा 
(४) मूर्ति की मुद्रा 
(५) और प्राण प्रतिष्ठा के समय उचित मंत्रो का प्रयोग 

यदि इन पांचो का सही मिश्रण किया जाय तो शक्तिशाली सकारात्मक ऊर्जा स्रोत उत्पन्न किया जा सकता है | परन्तु आजकल मंदिर निर्माण में शायद ही इन बातो पर कोई ध्यान देता है आजकल मंदिर शौपिंग मोल कि तरह होते है जहा विभिन्न दुकानों में अलग अलग देवी देवता सजे रहते है |

पुरातन भारत में लोग मंदिरों को ऊर्जाघरो की तरह प्रयोग करते थे | सांसारिक कार्यो में व्यस्त होने से पहले लोग सुबह सुबह मंदिर जाते थे और वहा कुछ समय व्यतीत करने के पश्चात ही लौटते थे इसी प्रकार संध्या बेला में भी यही प्रक्रिया दोहराई जाती थी | पर आजकल लोग मंदिर जाकर और प्रसाद चड़ाकर तुरंत लौट आते है , मंदिरों में विशेष स्थानों पर बैठने से एक अलग प्रकार क़ी ऊर्जा का अनुभव किया जा सकता है यह ऊर्जा हमारी शरीर की थकावट दूर करने के साथ साथ हमे नवीन ऊर्जा से परिपूर्ण कर देने कि क्षमता रखता है , इसीलिए बड़े बूड़े मंदिरों में जाकर और बैठकर भगवान का ध्यान करने के लिए कहते थे | 

हमारे युवा वर्ग को यह ध्यान में रखना चाहिए कि भारतीय संस्कृति और धर्म केवल धार्मिक ग्रंथो और किंवदंतियों पर ही आधारित नहीं है वरन छोटी से छोटी घटना के पीछे वेदों का विज्ञान है जिसे क्वांटम भौतिक विज्ञानी आजकल साबित करने में लगे है |

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रविवार, 15 जनवरी 2012

बनारस की मकर संक्रांति (Makar Sankranti of Varanasi)


आज मकर संक्रान्ति है | आज के दिन सूर्य उत्तर दिशा की ओर अपनी यात्रा प्रारंभ कर (जिसे हमलोग उत्तरायण के नाम से जानते है ) धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है | भारत में मकर संक्रान्ति पर्व आध्यत्मिक , सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टीकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण है | परम्परागत रूप से यह पर्व कृषको का उत्सव पर्व है जिसे शस्योत्सव (फ़सल कटने पर मनाया जाने वाला उत्सव) के नाम से भी जाना जाता है | शस्योत्सव होने के अलावा हिन्दू संकृति में मकर संक्रान्ति का अपना आध्यत्मिक महत्व है, मकर संक्रान्ति को एक शुभ चरण की शुरुआत के रूप में माना जाता है हिंदू मत के अनुसार यह पर्व अशुभ समय के अंत और शुभ समय के प्रारंभ का सूचक है , आज के दिन दान धर्म करने की भी बहुत महत्ता है | वैज्ञानिक दृष्टी से आज से दिन लम्बे और राते छोटी होना प्रारंभ होती है और ठिठुरती ठण्ड से ग्रीष्म ऋतू का धीरे धीरे आगमन होता है | पर बच्चो के लिए यह पर्व कुछ अलग ही मायने रखता है |

उत्तर भारत में और खास करके बनारस, जहाँ से मैं हूँ इसे खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है | आज के दिन पूरा आकाश पतंगों से सजा रहता है और रह रह के भाग काटे के ध्वनी कानो में आती रहती है | आज के दिन गंगा में अनगिनत लोग स्नान करने के लिए दूर दूर से आते है और स्नान के बाद दान पुण्य करते है | तिल के लड्डू और मिठाइयो के बिक्री जोर शोर से होती है और ह़ा पतंगों के भाव तो पुछीये ही मत जितनी बड़ी, छरहरी पतंग और जितनी तेज धार वाली नख (सूत) उतना महंगा उसका मूल्य | पर आज के दिन लोग दाम नहीं पतंगों का दम देखते है | गंगा घाट पर बड़े और बच्चे नावों में सवार होके लोग पतंग लूटने के लिए तैयार रहते है |

दोपहर को लोग सपरिवार स्वादिष्ट खिचड़ी के साथ तिल के लड्डू और दूसरे व्यंजन खाते है | और भोजन समाप्त होने के साथ साथ हो पतंगों की लड़ाई एक बार फिर शुरू हो जाती है | दोपहर से शाम तक ४-५ घंटे जम के पतंग बाजी होती है | पतंग बाजी के नए नए कीर्तिमान बनते और बिगड़ते रहते है | शाम होते होते धीरे धीरे आसमान खाली होने लगता है , सूत से भरी और खाली लठाई विजेता की घोषणा कर रहा होता है पर दूर कह़ी पेड़ पे अटकी हुई पतँग अगले साल एक बार फिर खिचड़ी की राह तकने लगती है |

इस नए वर्ष आप भी संक्रांति धूम धाम से मनाये इसी आशा के साथ आपका अपना -- सुदीप चक्रवर्ती