रविवार, 22 जनवरी 2012

मंदिरों के पीछे छुपा हुआ विज्ञान (Science Behind Indian Temples)



यह हमें हर समय ध्यान में रखना चाहिए कि हमारे पूर्वजो ने मंदिरों का निर्माण केवल प्रार्थना और पूजा करने कि लिए ही नहीं किया था वरन उसके पीछे अन्य कई कारण थे , परन्तु समय के साथ साथ आज कल मंदिर पूजा घर बन गए है | मूर्तिस्थापना, परिक्रमा, गर्भगृह आदि संरचनाओ में यदि उचित सामंजस्य हो तो वह एक अलग प्रकार कि उर्जा छेत्र का निर्माण करते है | मंदिरों में मूर्ति स्थापना या प्राण प्रतिष्ठा के समय पांच विषयो पर विशेष प्रकार ध्यान दिया जाता है  

(१) मूर्ति का आकार 
(२) मूर्ति का रूप 
(३) मूर्ति की दिशा 
(४) मूर्ति की मुद्रा 
(५) और प्राण प्रतिष्ठा के समय उचित मंत्रो का प्रयोग 

यदि इन पांचो का सही मिश्रण किया जाय तो शक्तिशाली सकारात्मक ऊर्जा स्रोत उत्पन्न किया जा सकता है | परन्तु आजकल मंदिर निर्माण में शायद ही इन बातो पर कोई ध्यान देता है आजकल मंदिर शौपिंग मोल कि तरह होते है जहा विभिन्न दुकानों में अलग अलग देवी देवता सजे रहते है |

पुरातन भारत में लोग मंदिरों को ऊर्जाघरो की तरह प्रयोग करते थे | सांसारिक कार्यो में व्यस्त होने से पहले लोग सुबह सुबह मंदिर जाते थे और वहा कुछ समय व्यतीत करने के पश्चात ही लौटते थे इसी प्रकार संध्या बेला में भी यही प्रक्रिया दोहराई जाती थी | पर आजकल लोग मंदिर जाकर और प्रसाद चड़ाकर तुरंत लौट आते है , मंदिरों में विशेष स्थानों पर बैठने से एक अलग प्रकार क़ी ऊर्जा का अनुभव किया जा सकता है यह ऊर्जा हमारी शरीर की थकावट दूर करने के साथ साथ हमे नवीन ऊर्जा से परिपूर्ण कर देने कि क्षमता रखता है , इसीलिए बड़े बूड़े मंदिरों में जाकर और बैठकर भगवान का ध्यान करने के लिए कहते थे | 

हमारे युवा वर्ग को यह ध्यान में रखना चाहिए कि भारतीय संस्कृति और धर्म केवल धार्मिक ग्रंथो और किंवदंतियों पर ही आधारित नहीं है वरन छोटी से छोटी घटना के पीछे वेदों का विज्ञान है जिसे क्वांटम भौतिक विज्ञानी आजकल साबित करने में लगे है |

आपकी टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी -- सुदीप चक्रवर्ती

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